बेरुखी
बहुत बेफिक्र था में जब इश्क़ में नहीं पड़ा था।
वफाओ पे इतना भरोसा था बेफ़ाई का ख्याल तक न था।
इश्क़ में कभी मेरी झोली नहीं रही खाली।
सपने टूट गए उदासी यहाँ रह गयी।
एक कांटा चुभा हो तो दर्द बता पाए।
उदास मन की कुंठा को हम कैसे बतला पाए।
अजीब खालीपन है ये।
निराशाओं का घोर अंधेरापन है।
अब उम्मीद नहीं करता में किसी से।
इश्क़ से पहले बेवफ़ाई नज़र आ जाती है।
कैसे कर पाउँगा भरोसा किसी पर।
अब चाहत लुटाने से लगता है डर।
यकीन नहीं होता अब किसी की बातों पर।
ठोकर ऐसी मेने खायी है।
हाथ जो फैलाये मेने उसके सामने।
बदले में बेरुखी मेने पायी है।

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