रोने की हसरत थी
लोग पूछते हैं क्यों सुर्ख है तुम्हारी आंखें
हस के कह देती हैं रात सो ना सकी
लाख चाहूं पर ये कह ना सकूं
रात रोने की हसरत थी पर रो ना सकी क्या
गम है क्या खुशी मालूम नहीं
अपना है कि अजनबी मालूम नहीं
जिसके बिना एक पल नहीं गुजरता
कैसे गुजरेगी ये जिंदगी मालूम नहीं।।
हस के कह देती हैं रात सो ना सकी
लाख चाहूं पर ये कह ना सकूं
रात रोने की हसरत थी पर रो ना सकी क्या
गम है क्या खुशी मालूम नहीं
अपना है कि अजनबी मालूम नहीं
जिसके बिना एक पल नहीं गुजरता
कैसे गुजरेगी ये जिंदगी मालूम नहीं।।
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