आईने से मुख़ातिब न होइयेगा



आईने से मुख़ातिब न होइयेगा
आईने भी अब वफ़ा नही करते.
सुरत दिखाकर सीरत छिपाये
हमारे अक्स से हमे ही डराये
दायें को बायां , बायें को दायां
ना जाने क्या क्या खेल दिखाये.
बदलते रहते है वक़्त के साथ
साथ निभाना इन की फ़ितरत मे नही

" आईने से भली है आँखे हमारी "
  अक़्सर बताती है सनम हमारी 😊
  जब भी झांके वो नजरे हमारी
  वो ही रंग वो ही रूप
  दिखाती है आज भी नजरे हमारी।।

       

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